Thursday, 21 February 2013

जन्म कुण्डली के दोष व उनका निराकरण

1 )  काल सर्प योग 

  नाग - नागिन का चाँदी का जोड़ा बनवाये । तत्पशचात शंकर जी के मन्दिर में जा कर उस जोड़े को जल से स्नान कराएँ और उस पर चन्दन का टीका लगाकर सफ़ेद नए कपड़े पर असन दें । फिर शिव परिवार को दूध और पानी से स्नान कराएँ , तिलक करें , पुष्प अर्पित करें और भोग लगायें तथा नाग - नागिन के जोड़े को स्थापित करें । पीले पुष्प अर्पित करें और एक कोरे सफेद कागज बगल में रखें । 11 अगरबत्ती लगाकर प्रार्थना करें-" ननुआँ त्रियम्बकेश्वर आप आइये और हमें काल सर्प योग से मुक्ति दिलाइये और आप भी कृपा कीजिये ।  " पहले बिछाये हुए कागज पर एक दिये में कच्चा दूध रखें बर्फी का भोग दें और घी का दीपक जलायें । 

2) राहू का दोष या प्रकोप 

पाँच प्रकार की देशी घी की मिठाई का एक- एक पीस लेकर एक सफेद कपड़े में बाँध कर उसे पत्तल पर रख कर ननुआँ जी का आवाहन करके प्रार्थना करें कि -" ननुआँ जी आप आइए और यह कार्य करा दीजिये एवं राहू के पाप, श्राप, और प्रकोप से मुक्ति दिलाइये और आप भी कृपा कीजिये। "  उसके बाद उस भोग को जल में प्रवाहित करदें । 

3 ) केतु का प्रकोप या दोष 

  • पाँच प्रकार की देशी घी से बनी मिठाई का एक - एक पीस लेकर एक नीले या लाल कपड़े में बाँध कर उसे पत्तल पर रख कर ननुआँ जी का आवाहन कर प्रार्थना करें कि -" ननुआँ जी आप आइये और यहाँ कार्य करा दीजिये एवं केतु के पाप, श्राप और प्रकोप से मुक्ति दिल दीजिये और आप भी कृपा कीजिये । "
  • ननुआँ जी का आवाहन कर मछलियों  को आटे की गोलियाँ बना कर 11 दिन तक खिलायें और प्रार्थना करें कि " ननुआँ जी आप आइये और मीन मत की सेवा करा दी जिए और इनके पाप, श्राप और प्रकोपों से मुक्ति दिलाइये और आप भी कृपा कीजिये । "
  • ननुआँ जी का आवाहन कर चिड़ियों को दाना/चावल 11 दिन तक खिलायें और प्रार्थना करे कि " ननुआँ जी आप आइये ,पक्षियों की सेवा करिये और इनके पाप, श्राप और प्रकोप से मुक्ति दिलाये और आप भी कृपा करें । " 

4) चन्द्रदेव का प्रकोप / दोष 


ननुआँ जी का आवाहन कर निवेदन करें कि " ननुआँ जी आप आइये और चन्द्र देव की सेवा करा दीजिये एवं इनके पाप श्राप से मुक्ति दिलाइये और आप भी कृपा कीजिये । " तत्पश्चात एक चाँदी का चन्द्रमा शिवजी के मन्दिर  में अर्पित कर शिव जी और चाँदी के चन्द्रमा का तिलक करें । बर्फी का भोग दें तथा घी का दीपक जलायें। 

5 ) शनिदेव का प्रकोप/दोष 


शनिवार को हनुमानजी को चमेली के तेल का चोला चड़ाए । 
शनिदेव के मन्दिर में सरसों के तेल का दीपक जलायें जिसमे दो - तीन नई लोहे की कील, काले तिल व राई डाली हो और ननुआँ जी का अवह कर निवेदन करें कि " ननुआँ जी आप आइये और शनिदेव की सेवा करा दीजिये और इनके पाप , श्राप और प्रकोप से मुक्ति करिये और आप भी कृपा कीजिये। "

 इनके आलावा कोई और ग्रह कष्टकारी हो तो ननुआँ जी द्वारा दृष्टि प्रदान उनके शिष्यों से संपर्क कर सकते हैं । ननुआँ ने बड़े ही आसान उपाए एवं प्रचलित व्रत बताये है जो एक गरीब व्यक्ति भी कर सकता है । ननुआँ जी कभी कोई रत्न नहीं बताते हैं।  



Wednesday, 20 February 2013

पाप कर्म और उनके प्रायश्चित हेतु उपाय


प्रत्येक पाप के प्रायश्चित हेतु अलग - अलग उपाय और भोग  हैं जो इस लेख में आगे लिखे  हैं , चार अगरबत्तियाँ  जलाकर ननुआँ जी का आवाहन करके उनसे  से निवेदन करें - " ननुआँ जी आप आइए और यह............ कार्य करा दीजिये तथा जिने  ये भोग भेंट दिलाना हो दिलाइये और हमें इनके पाप, श्राप , प्रकोप से क्षमा करिए तथा आप भी कृपा कीजिये ।  "

आवाहन  विधि - http://nanuachaprasi.blogspot.in/2013/02/4-21-4-invocation-technique-any-person.html


  1. यदि चीटी और चीटे मरे हैं तो २१ दिन मीठी पंजरी( घी में आटा भून  कर चीनी मिलाये ) का भोग दें | 
  2. जूते / चप्पलों से अनेक जीव मर जाते हैं इसलिए महीने में एक बार सारे जूते /चप्पलों को इकठ्ठा कर ननुआँ जी का आवाहन कर के इन पर  पीले फूल , जल ,मीठे का भोग दे और माफ़ी मांगे।
  3. पेड़ - पौधे, फल-सब्जी , अनाज को काटने से पाप लगता है इसलिए एक बाल्टी में थोड़ी सी चीनी डाल ननुआँ जी से पाप मुक्ति की प्राथना करें और उस पानी को हरे-भरे तथा सुखें पौधौं में डाले। इससे पूरा देश हराभरा हो जायेगा । 
  4. चूहे, बिल्ली, या कुत्ता  मारने पर या उनको घर से बाहर छुड़वाने २१  दिन तक आव्हान कर उनको  को दूध - रोटी रखें और पापों की क्षमा माँगे । 
  5. कोई भी पक्षी मारा हो तो २१ दिन दाना खिलाओ, और अगर तोते का पाप हो तो तोते को मिर्च और अमरुद खिलाये और माफ़ी मांगे । 
  6. खरगोश मारा हो या सपने में दिखा हो  तो २१ दिन तक ननुआँ  का आवाहन कर घास - फूस या रोटी खरगोश खिलाओ । 
  7. बकरा-बकरी , भैंस - भैंसे का पाप हो या मारा पीटा हो तो २१ दिन तक आवाहन कर  रोटी / चना  पशु के आहार के अनुसार दें और उनसे माफ़ी मांगे । 
  8. यदि बैल , गाय, बछड़ा का पाप हो तो ननुआँ जी का आवाहन कर प्रार्थना करें  कि " कामधेनु माँ / नन्दी जी को भोग भेट दिलायें और इनके पाप, श्राप, प्रकोपों से हमें क्षमा कराएँ और आप भी कृपा करें।  "
  9. मेंढक का पाप होने पर २१ दिन तक उन्हें जलेबी खिलाये ( तालाब या नाली के किनारे जहाँ वह मिले )। 
  10. यदि सुअर का पाप है तो 7 दिन तक ननुआँ जी  का आवाहन कर वाराह देव का भोग लगायें और सुअर को खिलाएँ । सुअर का पाप होने पर व्यक्ति के आचार , विचार , कर्म गन्दे हो जातें हैं। प्रायश्चित करने पर आचार - विचार और कर्मों में शुद्धि आती है । 
  11. यदि पति पत्नी में व्यर्थ का क्लेश हो तो  ननुआँ जी का आवाहन कर किसी पात्र में कपूर जलाकर 8 जोड़े फूल वाली लौंग के देशी घी के साथ ननुआँ लक्ष्मण तथा उर्मिला जी का नाम लेकर अग्नि में आहुति  दें  । 
  12. यदि कोई मनुष्य अहंकारी है तो घर का कोई भी व्यक्ति 5 पेड़े लेकर  ननुआँ जी का आवाहन कर उनसे प्रार्थना करे कि ननुआँ जी आप आइये और  रावन तथा उसके परिवार को भोग दिलाइये और ............( अहंकारी व्यक्ति का नाम ) को अहंकार के मुक्ति दिलाइये। 
  13. यदि किसी ने साँप मारे हों या मरवाया हों  या स्वपन में  साँप देखा हो तो वह 21 दिन तक ननुआँ जी का आवाहन कर साँप का  कच्चे  दूध का भोग लगायें और सिर्फ पहले दिन एक सवा मीटर सफ़ेद कपड़ा पूजा में रखें और अगले दिन किसी अपरिचित गरीब को देदें ।  ( क्यों कि साँप को प्रत्यक्ष दूध पिलाना सम्भव नहीं है इसलिए कच्चे दूध की कटोरी को किसी मन्दिर में रखदें या फिर एक रात मुंडेर पर रहने दें फिर उसे अगले दिन किसी पौधे में डाल दें जिसकी पूजा नहीं होती । )
  14. केले के पत्ते कटाने या कटवाने के पाप का प्रायश्चित करने हेतु एक घी का दीपक , एक बेसन का लड्डू और एक लोटा जल में चीनी - चावल डाल कर  4 अगरबत्ति जलाकर  ननुआँ  ब्रहस्पति गुरु  का आवाहन कर उनसे निवदेन करें कि " हम ने केले के पेड़ और पत्ते काटे या कटवाए हैं उसके लिए हम माफी माँगते हैं हमें माफ़ करें और भोग स्वीकार करें  "। ननुआँ जी कहते हैं की यदि किसी भी कारण  से केले के पेड़ या पत्ते को काटना या कटवाना पड़े भले पूजा के लिए ही तो पहले ननुआँ जी का वाहन करें फिर क्षमा माँग कर आज्ञा लेकर ही पत्ता तोड़ें । 
  15. तुलसी तो ओटा कर पीना पाप है इसके उपाए हेतु  आवाहन कर एक घी का दीपक, थोड़ा मीठा पानी और कुछ मिष्ठान दे कर ननुआँ तुलसी माँ से माफ़ी मागें । 
  16. माँ गंगा जी का प्रकोप - यदि आप ने किसी जलाशय या पवित्र नदी को दूषित किया है ( उसमें साबुन लगा कर नहाना , मल - मूत्र त्यागना  या मासिक धर्म के समय इनमें नहाना ) तो सवा लीटर कच्चा दूध लेकर उसमे एक पेड़ा डाल कर ननुआँ गंगा जी का आवाहन कर क्षमा याचना करें और उस दूध और पेडे को नदी में प्रवाहित कर दें । 
  17. पीपल का पेड़ कटाने या कटवाने के पाप  का  प्रायश्चित करने  हेतु ननुआँ जी का आवाहन कर एक घी का दीपक जलायें , थोड़ा  मीठा पानी और दही - पेड़ा का भोग लगायें और क्षमा याचना करें । 
  18. ननुआँ जी कहते हैं कि ज्यादा तर घरों में इसलिए तकलीफ है क्यों कि उनके आउत पित्र अतृप्त हैं इसके लिए ननुआँ जी कहते  की रोज उनके नाम का शुद्ध भोजन निकालना चाहिए और फिर उसे गाये को खिलादेना चाहिए । तथा कोई भी वस्त्र या वास्तु नई आये तो ननुआँ जी का आवाहन कर उनसे प्रार्थना करें की ननुआँ जी आप आइये और हमारे आउत - पितरों को यह भोग भेंट दिलवाइए आप कृपा करें और उनकी  कृपा करवाइए । 
  19. मछली मारने के पाप के  प्रायश्चित हेतु 21 दिन तक ननुआँ  जी का आवाहन कर आटे की गोलियाँ बनाकर मछालियों को खिलायें । 

Tuesday, 19 February 2013

पापों के प्रायश्चित हेतु हवन

पापों के प्रायश्चित हेतु हवन करने के लिए पहले बताई जा चुकी विधि  से हवन करें , फिर परिवार में जितने सदस्य हों उतनी संख्या में गरी के सूखे गोले लें और उनके ऊपर का छोटा सा हिस्से काट कर  ढक्कन हटा दें और जल से धोकर उसमें देसी घी ,मिष्ठान डाल कर निवेदन करें  -
"हे आकाश, पाताल, पृथ्वी पर रहने वाले देवी-देवताओं , आहूतों - पित्रों , राक्षसों यह भोग ग्रहण करें  और हमारे और गुरुदेव के बीच से हट जायें और उनसे हमारा सीधा संपर्क होने दें  "
इसके पश्चात पापों के प्रायश्चित हेतु ननुआँ जी से प्रार्थना करें और निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करने के बाद गोले को ढक्कन से बन्द करने के बाद हवन कुण्ड में डाल दें -
  मंत्र - 
          श्री गणेश ॐ ब्रह्म सच्चिदानंद महालक्ष्मी जी
          संचित पापं श्रापं प्रकोपम विनिश्यामी 
          वनखण्ड।य  नमः ननुआँ नमामि नमो नमः ।

यदि किसी प्राणी ने छिपकली , जुएँ , खटमल, दीमक, तिलचट्टे आदि मरे हों तो 3 बताशे लेकर उसमें उंगली से थोड़ा सा खून ( 1 - 2 बून्द ) निकाल कर लगा दें और ऊपर लिखे मंत्र पढ. कर तीनों बताशे हवन कुण्ड में डाल दें और सम्बन्धित प्राणियों से क्षमा माँगे । 
( खून निकलने के लिये नई इंजेक्शन की सूई का ही इस्तिमाल करें , और इक बार एक ही व्यक्ति पर इस्तमाल करें फिर उसे फेक दें  )   

Monday, 18 February 2013

हवन विधि


हवन करने हेतु  सर्वप्रथम  ननुआँ  जी के चित्र पर हल्दी, चूने और चावल से तिलक करें  फिर  फूलमाला चढ़।ये  ।  तदुपरांत  5 अगरबत्ती जलाये 1 आड़ी और 4 खड़ी; फिर 1 बार ॐ गणेशाये नमः तथा 21 बार अलखनिरंजन का जाप करें  और उसके बाद में 21 बार ननुआँ जी का जाप करें, फिर जय मार्गी गुरु, जय सद गुरु, जय ब्राह्म देव , जय गुरुदेव , जय ईष्ट देव/देवता , जय कुल देवी /देवता बोलें  और  स्वामी कार्तिकेय जी और गणेश जी को ननुआँ जी के साथ आमंत्रित करें । अब गणश वन्दना करें ।

इसके बाद पृथ्वी पूजन करें ,  नव ग्रहों  का पूजन करें, स्थानी शक्तियों का आवाहन करें, उनको आसन दे , भोग- भेंट  दें । एक घी का दीपक जलायें । ननुआँ जी के लिए एक तम्बाकू  का तथा एक सादा पान भेंट करें ।
हवन करते समय अपने गुरु, ईष्ट, कुल देवी/देवता , पृथ्वी माता, ब्रह्मा जी, विष्णुजी, शिवजी, गौरीजी, गणेशजी, हनुमानजी,  स्थानिय शक्तियों को आहुति दें और अपने ईष्ट के मंत्र से यथाशक्ति आहुति दें । इसके इलावा अन्य किसी शक्ति की आहुति देनी है तो उनकी भी आहुति दें ।

पूजन सामग्री -  हवन सामग्री, गारी का गोला, देशी घी, कपूर, आम या छेवले की लकड़ी, 1 पूजा का पान -  मीठा ,1 पान सादा, 1 पान तम्बाकू  का, मेवा, फूलमाला, अगरबत्तियाँ, गुलाब एवं खस का इत्र ।

भोग - मलायी  का लड्डू, बेसन का लड्डू , बूंदी का लड्डू , बर्फी , सोनपपड़ी, देशी घी में बना सूजी का हलुआ , रस्माली , काला एवं सफेद रसगुल्ला व नमकीन।

जितने लोग हवन करने के लिये तैयार हैं वे एक-एक अगरबत्ती  जलाकर 1 बार श्री गणेशाय नमः और 21 बार ननुआँ जी - ननुआँ जी  का जाप करें फिर आहुति दें । आहुतियाँ  देते समय क्रम से निम्नलिखित मंत्रो का उच्चारण करें उसके बाद अगर कोई और मंत्र की आहुति देनी है तो वह दें सकते हैं ।

1) ॐ नमः शिवाय वनखण्ड।य  नमः ननुआँ नमामि नमो नमः ।

2) ॐ जय बड़े - छोटे सरकार माताजी वनखण्ड।य  नमः
     ननुआँ नमामि नमो नमः ।

3)ॐ जय महाकाली माँ महाकालकालाये नमः वनखण्ड।य  नमः
    ननुआँ नमामि नमो नमः ।

4) ॐ  ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे नमः वनखण्ड।य  नमः 
     ननुआँ  नमामि नमो नमः ।

5) ॐ जय रामराजाय सीता माता हनुमतये  नमः वनखण्ड।य  नमः 
     ननुआँ नमामि नमो नमः ।

6) ॐ त्रियाम्बकं यजामहे सुगन्धिम पुष्टिवर्धनम । 
     उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय माम्रतात वनखण्ड।य  नमः 
     ननुआँ  नमामि नमो नमः । ।  


7 ) ॐ जय टीले  वाली माँ वनखण्ड।य  नमः ननुआँ नमामि नमो नमः । 

हवन / पूजा कर ते समय 1 अगरबत्ती  आड़ी जरुर लगाये इससे एक सुरक्षा कवच बन जाता है और अवांछनीय शक्ति परेशान नहीं करती । हवन करने के इच्छुक  व्यक्ति हवन  सामग्री में चीनी, काले तिल, मेवा , घी, मिला कर उपरोक्त विधि से हवन  करें । हवन के बाद हवन कुण्ड  में भोग दें । उपस्थित शक्तियों को भी भोग और जल दें । 










Saturday, 16 February 2013

पूजन  विधि 

जिस प्रकार पूजन हेतु गणपति भगवान की आराधना आवश्यक है उसी प्रकार भक्त/साधक के लिये ईष्ट पूजा भी अनिवार्य है । यह जरुरी नहीं कि आप जिस देवी/ देवता की पूजा/साधना करते हों वाही आप के ईष्ट देव हों ।
अपने ईष्ट की जानकारी आप ननुआँ  जी के कृपा पात्र दृष्टि वाले शिष्य से कर सकते हैं अथवा किसी अन्य सक्षम ज्ञानी जिसे यह बताने की शक्ति हो। जो अपने गुरु को साथ लेकर  किसी भी देवी/देवता , त्रिलोकी नाथ भगवान की आराधना करेगा तो उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होगी।

साधक अपने ईष्ट के नाम के साथ -"वनखण्ड।य  नमः ननुआँ नमामि नमो नमः" का जाप / हवन करें तो कल्याण अवश्य होगा। यदि किसी के ईष्ट भगवान शंकर हैं तो उसके लिये "ॐ नमः शिवाये वनखण्ड।य नमः ननुआँ नमामि नमो नमः" मंत्र होगा । यही मंत्र जाप और पूजा दोनों के लिये अभीष्ट  फलदायक होगा ।

वनखण्ड।य  से तात्पर्य शिवजी से है । जिसकी स्थापना पाण्डवों ने महाभारत काल में पावन स्थली दतिया में वर्तमान में पीताम्बरा पीठ मन्दिर प्रांगण में की थी । इसी परिसर में माँ पीताम्बरा और श्री धूमावती माँ के सिद्ध मन्दिर भी है , वासर मिलने पर इनके दर्शन अवश्य करें ।












 

Friday, 15 February 2013

ननुआँ  जी  की  आरती 



ॐ जय ननुआँ ब्रह्म  हरे, श्री ननुआँ ब्रह्म हरे।
सनकादिक, ब्रह्मादिक्, विष्णु, शिव जयकार करें ।। 1 ।।

                                                ॐ जय ननुआँ ब्रह्म हरे ....

जय सत्यवान , जय हनुमान , जय ननुआँ ब्रह्म  हरे ।
सनकादिक , ब्रह्मादिक्, विष्णु , शिव जयकार करे ।। 2 ।।

                                                ॐ जय ननुआँ ब्रह्म हरे .... 

 गणपति , धनपति , जनपति ,जय गुरु मंगलकारी, गुरु गुरु  मंगलकरी । 
 मातपिता, सुत , बेटी , भ्राता , पूजें  नर - नारी ।। 3 ।।

                                                ॐ जय ननुआँ ब्रह्म  हरे .... 

माया , मोह, तम नाशक ह्रदय घट - घट वासी , गुरु-गुरु  घट घटवासी ।
ज्ञान खड़ग  है क्षण में , ज्ञान पलट है पल में पाप दु:ख नाशी।। 4 ।।

                                                ॐ जय ननुआँ ब्रह्म हरे ....

गुरु ब्रह्मा , गुरु विष्णु , गुरु शिव भण्डारी, गुरु - गुरु संकट हारी ।
सब में प्रेम समाया , पार न कोई पाया महिमा है न्यारी ।। 5 ।।

                                                ॐ जय ननुआँ ब्रहम हरे ....

भटकत जो ब्रह्म जाल में , गुरु उद्धार करे, श्री गुरु उद्धार करे ।
सबका सार बताकर ,सबका सार बताकर , भाव से पार करें ।। 6 ।।

                                                 ॐ जय ननुआँ ब्रह्म हरे ....

श्री गुरु ब्रह्म  की आरती , जो श्रद्धा भाव गए , जो श्रद्धा भाव गए ।
ताहि अनन्त कृपा से, ताहि अनन्त कृपा से , गुरु ब्रह्मा मिल जाये ।। 7 ।।
 
                                                ॐ जय ननुआँ ब्रह्म हरे ....
  
 







भोग लगाने हेतु भजन 


 

आओ भोग लगाओ मेरे ननुआँ , आओ भोग लगाओ ।

 

दुर्योधन की मेवा त्यागी , शाक विदुर घर  खायो ।

 

आओ भोग लगाओ मेरे ननुआँ  .........

 

शबरी के बेर , सुदामा के तंदुल रुचि - रूचि भोग लगाओ मेरे ननुआँ 

 

ऐसा भोग लगाओ मेरे ननुआँ,  सब अमृत हो जाये मेरे ननुआँ 

 

सब शक्तिन  को  भोग तो दे दो . हाथ  फैलाये खड़ी मेरे ननुआँ 

 

पूरब - पश्चिम , उत्तर, दक्षिण , चारो दिशाओं से आओ मेरे ननुआँ

 

 जो कोई तेरा भोग लगाये , वो ही तेरा होजाए मेरे ननुआँ 

 

सबकी की आशा पूरी करदो , मेरी भी आस बुझाओ मेरे ननुआँ 

 

भोग लगाकर बाहर  आओ , सबको दरस दिखाओ मेरे ननुआँ 

 

आओ भोग लगाओ मेरे ननुआँ ............

ॐ ननुआँ  इकतालीस श्री 


ननुआँ - ननुआँ  रटत ही , कटें जन्म के फ़न्द ।
जो अस जीए संसय करे,  ताके  लोचन बंद।।
ननुआँ  ही  है ॐ भी, ननुआँ नूरे इलाही ।
ननुआँ  चपरासी ही जग में सुरमा और सलाही ।।
भरा नहीं जो ननुआँ से , बहती ननुआँ की धार नहीं ।
ह्रदय नहीं वह पत्थर है , जिसे ननुआँ जी से प्यार नहीं।।
श्री गणेश गुरु कृपा का , ध्यान हृदय में धार।
ननुआँ  इकतालीसा पढ. , करे जो भाव से पार ।।

जय ननुआँ प्रताप तुम्हरे ,मैटो दु:ख संसार के सारे।
तीन लोक के हो तुम स्वामी , तुम घट - घट के अंतरयामी ।।
जितने पाप जगत में कीजे ,  सुमरत नाम सभी तुम छीजे।
जग दु:ख हरण आप हो आये , महिमा तुम्हरी कौन सुनाये।।
शक्ति संग सभी है रहती , जग सेवा करने को कहती ।
ह्रदय कपाट शीघ्र खुल जाए , तो सपनेहु न पाप सताए।।
पापों के प्रायश्चित कराओ , जीवन अपना सफल बनाओ ।
जो आवे ननुआँ  की शरणा , उसको  किसी बात का डरना।।
क्षण में दुःख सब के हर लेते, करके अभय परम सुख देते।
कोमल चित्त दया के सागर , रिद्दि - सिद्धि में सब गुण आगर ।।
जो सुमरे जग नाम तुम्हारा , होता तुरन्त हृदय उजयारा।
संसय विहग तुरन्त  उड़ जाए , जो ननुआँ  का नाम सुनाए ।।
संकट हरण नाम ये भाई , बोलो ह्रदय कपट बिसराई।
वेद , पुराण , शास्त्र  सब कहते , ननुआँ  भज क्यों सुख न लेते।।
जिसने जाना भेद तुम्हारा , निश्चय मिले मोक्ष का द्वारा ।
फिर न रहे उसे कुछ बाकी , सफल भावना होवे ताकि।।
जग में है अति दु:ख घनेरे , पापों ने है प्राणी घेरे।
क्यों न नाम सुमिरि दु:ख काटौ , रहे न सुख सम्पत्ति को घाटौ।।
और देवता जग में जेते , इतनी जल्दी न सुख देते।
संकट समय जो नाम पुकारौ , नाम लेत ही मिले सहारौ ।।
मंत्र  किले संसार के सारे , कैसे काम करे बेचारे।
मंत्र  बड़ा ननुआँ का सबसे , छुटकारा देता है भव से।।
पाठ  मंत्र कोई काम करे न , क्यों कि पाप भोझ उतरे ना ।
तीरथ धाम  त्रिवेणी काशी , ननुआँ बिना कटे न फाँसी ।।
चमत्कार मय  नाम अनुपम , पास न आये कभी दूत यम ।
हो जावे दु:ख से छुटकारा, मिल जावे सुख का भण्डारा ।।
ज्ञानी ज्ञान खोज कर हारे , रह गए सब किस्मत के मारे ।
प्रारब्ध भोग सबै तरसाया , मारग सच्चा नहीं मिल पाया।।
अब पुनि नाम ग्रहाण ये कर लो , अपने ह्रदय बीच ये धर लो।
ननुआँ  मानव सखा आप हो , सब शक्तिन के पिता आप हो ।।
दीजे अब सुखों की चाबी , नहीं आपदा आवे भारी ।
 नहीं कुछ नाम नियम जपने का , सदा ध्यान रखते अपनो का।।
हर दम संग सभी के रहते , जो जन ननुआँ - ननुआँ कहते ।
जग दु:खिया लाख कर तुम आये , सुमरत ही सब दु:खहि मिटाए।।
दीन धर्म का नहीं कुछ भेदा , सब मतभेद कर दिये अलहदा ।
सब को देखा एक समाना , नहीं पड़े कोई कष्ट उठाना।
आगे मर्यादा रखने को , स्वर्ग समान विश्व करने को।।
सब पर कृपा करो बिन सेवा , अति उदार कोमल चित देवा।
काया  पलट सभी की करने , सभी भार भूमि का हरने ।।
प्रकटे तुम अच्छे चपरासी , सच्चा फल पावे विश्वासी ।
जो शतबार  पाठ कर जोई, निश्चय अमर जगत में होई ।।
ननुआँ  चपरासी करो , कृपा आप तत्काल।
दीन  हीनता दूर कर , करदो मुझे निहाल ।।
 
 


















Thursday, 14 February 2013

                                    ।।श्री गुरु वन्दना।।


मम वन्दन  सतगुरु चरण , परम मृदुल सुखमार ।
जीवों के उपकार को , धरा मनुज अवतार ।। 1 ।।

नमो नमो गुरुदेव जी ,नमो नमो दातार ।
श्री युगल चरणन में , करूँ नमन शत बार ।। 2 ।।

चरणन नाम लिवाय के , रहूँ नाम लिवलाय ।
ऐसी कृपा प्रभु कीजिये , पलकन दूर न पाय ।। 3 ।।

इक मन इक चित्त से करूँ , गुरु चरणन में नेह ।
जन्म सफल हुई जायेगा , सुफल होएगी देह ।। 4 ।।

चपरासी ननुआँ  गुरु , आनन्द कन्द सुखधाम ।
दास हृदय में बसो प्रभु , हर पल आठो  याम ।।5।।

जो आवे सतगुरु शरण , श्रद्धा भाव समेत ।
दाना माना आप गुरु, मन वांछित फल देत ।। 6 ।।

महिमा  सुन कर आगया , मैं भी तेरे द्वार ।
अनुकम्पा कर कट दो, बहो जात मझधार ।। 7 ।।

और कछु याचूँ  नहीं , पाऊँ विमल विवेक ।
 दासानुदास को दीजिये , सुन्दर सा सुत एक ।। 8 ।।

गुरु को सिर पर राखिये , चलिये आज्ञा पाई ।
कहे प्रकश ता दास को, तीन लोक उर माहि ।। 9 ।।





                         । श्री गणेश वन्दना ।

 

गणराज  दु:खी  जन की नैया , भव सागर पार लगा देना ।

बल, बुद्धि , ज्ञान भण्डार  भरो, भव फ़न्द  से  हमें  छुड़। देना ।।

 

गणपति तुम सब कुछ लायक हो , भक्तों  के सदा  सहायक हो।

अज्ञान , मद ,मोह  का पर्दा,  इस दास  का  नाथ  हटा  देना ।।  1 ।।

 

तुम  बुद्धि  गुणागर  हो स्वामी ,तुम  दाता  हो  भण्डारी  हो ।

इस दास दु:खी  निज सेवक को , भव  सिन्धु के पार लगा देना ।। 2 ।।

है सत्य मार्ग जो भक्ति का , जिससे मुक्ति मिल जाती है ।

हम भूले , भटके अन्धों को , वह  मुक्ति मार्ग दिखला देना।। 3 ।।

माता दुर्गे का पाला हूँ , मैं  कभी  नहीं  मतवाला  हूँ ।

इस ब्राह्म सुधा के सागर में , गुरु फिर दे कमल खिला देना ।। 4 ।।


(image from google search)

आग्रह विधि 

 

 श्री गौरीनन्दन श्री गणेशजी को प्रथम पूज्य माना  जाता है और हम इसी पध्यति को अपनाते हुए गजानन महाराज की स्तुति करते हैं परन्तु  परम पूज्य श्री ननुआँ जी  कहते हैं कि भगवान कार्तिकेय का ध्यान करना भी आवश्यक है।

जो  व्यक्ति  अति  दू:खी  एवं  समस्या ग्रस्त है, वह निम्न शब्दों में से अपनी विचार धारा के अनुसार 4 अगरबत्ती  जलाकर   21 बार  आवाहन कर अपनी किसी भी समस्या के समाधान हेतु  प्राथना करे---

 

हिन्दू    ---                                ॐ  ननुआँ  नमामि नमो नमः ।

मुस्लिम ---                               या ननुआँ  नूरे इलाही ।

सिख ---                                    ननुआँ  नानक जी ।

इसाई ---                                   ननुआँ  यीशु ( 4 मोमबत्तियाँ  जलायें )

 


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Invocation technique 

Any person who is in problem can invoke Nanuaji according to their religious belief  : 

Hindu -   Om Nanua Namami Namoh Nmah

Muslim -  Ya Nanua Nure Ilahi 

Sikh -       Nanua Nanak ji

Christian -  Nanua Yeshu (4 candles)  

 

 Light 4 incense sticks (agarbatti) or 4 candles and invoke Nanuaji 21 times by the above suitable phrase and pray to him to solve your problem.

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                               ।। श्री गणेशाय  नमः ।।

ननुआँ जी  का आध्यात्मिक प्रवेश ।   

परम पूज्य गुरुदेव श्री नानुआँ जी चपरासी ने जिला बुलन्द शहर उत्तर प्रदेश के राम घाट कस्बे  में ब्राह्मण  कुल में  26 जून , 1926  को स्वामीजी के  परिवार में जन्म लिया । स्वामी जी ने इनका नाम विष्णु दत्त रखा । गुरुदेव ने लगभग 35 वर्ष तक सामान्य जीवन जिया । तदुपरांत आध्यात्म  की ओर रुख किया । पूज्य बड़े गुरुदेव श्री नागा जी ने इन्हें शिष्य रूप में स्वीकार कर आध्यात्म क्षेत्र में प्रवेश कराया । इनके दिशा निर्देश में ननुआँ जी ने 24 वर्ष हठ योग के द्वारा कठोर साधना एवं जप-तप रामघाट में सिद्धवरी नमक स्थान के विशाल वाट वृक्ष के नीचे किया और दिव्य दृष्टि तथा ज्ञानार्जन किया ।
 
रामघाट में कई प्राचीन तथा सिद्ध मन्दिर भी हैं जैसे - टीले वाली माता, शिवजी , माँ अन्नपूर्णा , दाऊबाबा , हनुमानजी , नरसिंह भगवान ..... यहाँ पर परम पवित्र पावन माँ गंगा भी बहती हैं। अवसर मिलने पर इन पवित्र एवं  सिद्ध स्थानों के दर्शन अवश्य करें ।
"ॐ - श्री"  वह प्राण शक्ति है जो इस संसार का संचालन करती है और इस शक्ति के सामने हम आप सब नतमस्तक हैं। इसी " ॐ - श्री " के सत्व से 'ननुआँ चपरासी' शब्द का उद्गम हुआ है।
 श्री ननुआँ जी ने आध्यात्म के क्षेत्र में अन्य धर्म गुरुओं के कार्य क्षेत्र से हट कर एक अलग शैली को अपनाया है । ननुआँ जी अपने शिष्यों को उनके मापदण्ड के आधार पर दिव्या दृष्टि प्रदान करी  हैं जिसके द्वारा उनके शिष्य, दु:खी  प्राणी जनो की समस्या , दु:ख, बीमारी तथा अन्य संकटों के कारणों का पता लगा कर उनका निवारण करते हैं और 21 जन्मों के पापों से मुक्ति दिलाते हैं । ( " किसी भी बीमारी में डॉक्टर से इलाज अवश्य कराएँ ।")
ननुआँ जी कहते हैं कि इन्सान अपने इस जन्म और पूर्व जन्मों के पाप कर्मों के कारण ही पीड़ा भोगता है और यही पाप संस्कार उससे कर्म कुकर्म कराते हैं  इसलिए इनसे मुक्ति पाना जरुरी है। ननुआँ जी ने पापों से मुक्ति पाने के बहुत ही सरल  एवं सात्विक उपाय बताये हैं । आगे के लेखों में इनके बारे में विस्तार से बताया जायेगा ।ननुआँ जी कहते है कि सबको अपने गुरु, ईष्ट, कुल देवी -देवता की पूजा तथा  आऊत -पितृओं के  शान्ति उपाय करने चाहिए इसे जीवन काफी सरल हो जाता है ।
ननुआँ जी  ने 7 जुलाई 2009 में निर्वाण प्राप्त किया, पर आज भी वो हमारे बीच में हैं और हमें अपना मार्ग दर्शन और सुरक्षा प्रदान कर रहे  हैं । उनके अनेक  अनुयायी अलग - अलग शहरों में रहकर ननुआँ  जी और उनके द्वारा दी गई दिव्य दृष्टि से लोगों की सेवा कर रहे हैं ।
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