Friday, 15 February 2013

ॐ ननुआँ  इकतालीस श्री 


ननुआँ - ननुआँ  रटत ही , कटें जन्म के फ़न्द ।
जो अस जीए संसय करे,  ताके  लोचन बंद।।
ननुआँ  ही  है ॐ भी, ननुआँ नूरे इलाही ।
ननुआँ  चपरासी ही जग में सुरमा और सलाही ।।
भरा नहीं जो ननुआँ से , बहती ननुआँ की धार नहीं ।
ह्रदय नहीं वह पत्थर है , जिसे ननुआँ जी से प्यार नहीं।।
श्री गणेश गुरु कृपा का , ध्यान हृदय में धार।
ननुआँ  इकतालीसा पढ. , करे जो भाव से पार ।।

जय ननुआँ प्रताप तुम्हरे ,मैटो दु:ख संसार के सारे।
तीन लोक के हो तुम स्वामी , तुम घट - घट के अंतरयामी ।।
जितने पाप जगत में कीजे ,  सुमरत नाम सभी तुम छीजे।
जग दु:ख हरण आप हो आये , महिमा तुम्हरी कौन सुनाये।।
शक्ति संग सभी है रहती , जग सेवा करने को कहती ।
ह्रदय कपाट शीघ्र खुल जाए , तो सपनेहु न पाप सताए।।
पापों के प्रायश्चित कराओ , जीवन अपना सफल बनाओ ।
जो आवे ननुआँ  की शरणा , उसको  किसी बात का डरना।।
क्षण में दुःख सब के हर लेते, करके अभय परम सुख देते।
कोमल चित्त दया के सागर , रिद्दि - सिद्धि में सब गुण आगर ।।
जो सुमरे जग नाम तुम्हारा , होता तुरन्त हृदय उजयारा।
संसय विहग तुरन्त  उड़ जाए , जो ननुआँ  का नाम सुनाए ।।
संकट हरण नाम ये भाई , बोलो ह्रदय कपट बिसराई।
वेद , पुराण , शास्त्र  सब कहते , ननुआँ  भज क्यों सुख न लेते।।
जिसने जाना भेद तुम्हारा , निश्चय मिले मोक्ष का द्वारा ।
फिर न रहे उसे कुछ बाकी , सफल भावना होवे ताकि।।
जग में है अति दु:ख घनेरे , पापों ने है प्राणी घेरे।
क्यों न नाम सुमिरि दु:ख काटौ , रहे न सुख सम्पत्ति को घाटौ।।
और देवता जग में जेते , इतनी जल्दी न सुख देते।
संकट समय जो नाम पुकारौ , नाम लेत ही मिले सहारौ ।।
मंत्र  किले संसार के सारे , कैसे काम करे बेचारे।
मंत्र  बड़ा ननुआँ का सबसे , छुटकारा देता है भव से।।
पाठ  मंत्र कोई काम करे न , क्यों कि पाप भोझ उतरे ना ।
तीरथ धाम  त्रिवेणी काशी , ननुआँ बिना कटे न फाँसी ।।
चमत्कार मय  नाम अनुपम , पास न आये कभी दूत यम ।
हो जावे दु:ख से छुटकारा, मिल जावे सुख का भण्डारा ।।
ज्ञानी ज्ञान खोज कर हारे , रह गए सब किस्मत के मारे ।
प्रारब्ध भोग सबै तरसाया , मारग सच्चा नहीं मिल पाया।।
अब पुनि नाम ग्रहाण ये कर लो , अपने ह्रदय बीच ये धर लो।
ननुआँ  मानव सखा आप हो , सब शक्तिन के पिता आप हो ।।
दीजे अब सुखों की चाबी , नहीं आपदा आवे भारी ।
 नहीं कुछ नाम नियम जपने का , सदा ध्यान रखते अपनो का।।
हर दम संग सभी के रहते , जो जन ननुआँ - ननुआँ कहते ।
जग दु:खिया लाख कर तुम आये , सुमरत ही सब दु:खहि मिटाए।।
दीन धर्म का नहीं कुछ भेदा , सब मतभेद कर दिये अलहदा ।
सब को देखा एक समाना , नहीं पड़े कोई कष्ट उठाना।
आगे मर्यादा रखने को , स्वर्ग समान विश्व करने को।।
सब पर कृपा करो बिन सेवा , अति उदार कोमल चित देवा।
काया  पलट सभी की करने , सभी भार भूमि का हरने ।।
प्रकटे तुम अच्छे चपरासी , सच्चा फल पावे विश्वासी ।
जो शतबार  पाठ कर जोई, निश्चय अमर जगत में होई ।।
ननुआँ  चपरासी करो , कृपा आप तत्काल।
दीन  हीनता दूर कर , करदो मुझे निहाल ।।
 
 


















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