पूजन विधि
जिस प्रकार पूजन हेतु गणपति भगवान की आराधना आवश्यक है उसी प्रकार भक्त/साधक के लिये ईष्ट पूजा भी अनिवार्य है । यह जरुरी नहीं कि आप जिस देवी/ देवता की पूजा/साधना करते हों वाही आप के ईष्ट देव हों ।अपने ईष्ट की जानकारी आप ननुआँ जी के कृपा पात्र दृष्टि वाले शिष्य से कर सकते हैं अथवा किसी अन्य सक्षम ज्ञानी जिसे यह बताने की शक्ति हो। जो अपने गुरु को साथ लेकर किसी भी देवी/देवता , त्रिलोकी नाथ भगवान की आराधना करेगा तो उसे मनवांछित फल की प्राप्ति होगी।
साधक अपने ईष्ट के नाम के साथ -"वनखण्ड।य नमः ननुआँ नमामि नमो नमः" का जाप / हवन करें तो कल्याण अवश्य होगा। यदि किसी के ईष्ट भगवान शंकर हैं तो उसके लिये "ॐ नमः शिवाये वनखण्ड।य नमः ननुआँ नमामि नमो नमः" मंत्र होगा । यही मंत्र जाप और पूजा दोनों के लिये अभीष्ट फलदायक होगा ।
वनखण्ड।य से तात्पर्य शिवजी से है । जिसकी स्थापना पाण्डवों ने महाभारत काल में पावन स्थली दतिया में वर्तमान में पीताम्बरा पीठ मन्दिर प्रांगण में की थी । इसी परिसर में माँ पीताम्बरा और श्री धूमावती माँ के सिद्ध मन्दिर भी है , वासर मिलने पर इनके दर्शन अवश्य करें ।
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